नारी कारण और निवारण जीवन के हर रूप जीती है .नारी अच्छा और बुरा चरित्र ....किन्तु क्या अकेली ही सबकुछ कर सकती है ..बिना कारण ही ...बिना किसी हसक्षेप के .....क्या पुरुष की कूटनीति कुछ भी नहीं है .....बहुपत्नी प्रथा किसने शुरू की ..क्या स्त्रियों ने ....मंथरा ने जो किया क्या दशरथ के वचन जिम्मेदार नहीं थे ... ?
हे नारी तू अवगुणों का भंडार है ,
तेरा त्रियाचरित्र अपरम्पार है
सुना है सच को झूठ बनाने मे तेरा ही एकाधिकार है
पुरुष बहुत भोले सीधे-साधे ...बस औरत ही गुनहगार है
हर प्रपंच रचने में माहिर ..हे प्रपंचा ,प्रपंचधारिणी ..
तू कलयुगी व्यभिचार है ,
तू अकारथ ..ज्ञानवती होकर भी समाज को कलुषित करती निन्दागार है
हे नारी ..तेरे त्राण जीवन का अपकार है ,तू ही पापिनी तू निशचिन ..
तुझसे बिगड़ा ये संसार है ,
..
जो पेट चीर देती जन्म सहती व्यथा ,
नहीं गाती कथा ...हुआ अब जीवन वृथा
दंश देता रहा सदा .. जब बेच तन पाली ममता
बड़ा हुआ जब कहता है कुलटा ..
वाह री नारी ...तू अकल्याणी..विद्रोहिणी ,
तू ही निर्मम तू ही निर्लज्ज ..
तू ही पाषाण ..तोड़ी थी आन ..
नहीं था ..निभाने में परम्परा होगी कलंकिता
राजा की पटरानी या थी नौकरानी ..
घर से निकाली ..पति ने त्यागी ..
हे नारी तू कैसी हतभागी ..
--लीलाधारी की लीला ने बस नारी को लील लिया ..
बढकर लेखनी ने भी ...औरत को जलील किया
क्या सत्य उजागर हो पाया ...
जो पुरुष ने चाह ...वोही सदा से सिद्ध किया .-- विजयलक्ष्मी
हे नारी तू अवगुणों का भंडार है ,
तेरा त्रियाचरित्र अपरम्पार है
सुना है सच को झूठ बनाने मे तेरा ही एकाधिकार है
पुरुष बहुत भोले सीधे-साधे ...बस औरत ही गुनहगार है
हर प्रपंच रचने में माहिर ..हे प्रपंचा ,प्रपंचधारिणी ..
तू कलयुगी व्यभिचार है ,
तू अकारथ ..ज्ञानवती होकर भी समाज को कलुषित करती निन्दागार है
हे नारी ..तेरे त्राण जीवन का अपकार है ,तू ही पापिनी तू निशचिन ..
तुझसे बिगड़ा ये संसार है ,
..
जो पेट चीर देती जन्म सहती व्यथा ,
नहीं गाती कथा ...हुआ अब जीवन वृथा
दंश देता रहा सदा .. जब बेच तन पाली ममता
बड़ा हुआ जब कहता है कुलटा ..
वाह री नारी ...तू अकल्याणी..विद्रोहिणी ,
तू ही निर्मम तू ही निर्लज्ज ..
तू ही पाषाण ..तोड़ी थी आन ..
नहीं था ..निभाने में परम्परा होगी कलंकिता
राजा की पटरानी या थी नौकरानी ..
घर से निकाली ..पति ने त्यागी ..
हे नारी तू कैसी हतभागी ..
--लीलाधारी की लीला ने बस नारी को लील लिया ..
बढकर लेखनी ने भी ...औरत को जलील किया
क्या सत्य उजागर हो पाया ...
जो पुरुष ने चाह ...वोही सदा से सिद्ध किया .-- विजयलक्ष्मी
-लीलाधारी की लीला ने बस नारी को लील लिया ..
ReplyDeleteबढकर लेखनी ने भी ...औरत को जलील किया
क्या सत्य उजागर हो पाया ...
जो पुरुष ने चाह ...वोही सदा से सिद्ध किया .-
सत्यता दर्शाती रचना...स्वागत एवं बधाई।