हम धरती गगन है देख लो वजूद अपना ,
क्षितिज से मिलन का खूबसूरत सा सपना.
जुदा कब मिलकर हुए यही रहनुमाई बहुत
देह की काँचुली से दूर रूहानी सफर अपना .
समन्दर खारा सा मगर कशिश उसमे बहुत
लहर-लहर पंख लगाये बैठ संवरता सपना .
चंदा पनाह मांगे चांदनी अठखेलियाँ करती
आफ़ताब भी मांगे है उसी से ठौर भी अपना
----विजयलक्ष्मी
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