कुछ पल नहीं ,
एक दिन नहीं .
पूरी जिन्दगी
पूरी कायनात
सारी धरती
पूरा अम्बर
एक हिस्सा नहीं
हर दाना
जन्म मृत्यु सा समरस
सुख दुःख दोनों में
विलास नहीं विकास में
कुछ शब्दों में नहीं
एक सम्पूर्ण विचार
आधी अधूरी नहीं
कर्तव्य को साथ लिए अधिकार में नर में इकारांत शक्ति का संचार बनना है
स्त्रीत्व के सुकोमल अभिव्यंजना के साथ सत्य के कठोर धरातल में
विराजती हुयी विस्तृत विरासत का हिस्सा ..
पूर्णत्व प्रदान करने की अभिलाषा लिए
उसी अहसास को जीवन देना चाहती है स्त्री
जो प्रथक नहीं ,
बंटा हुआ नहीं
टुकड़ा नहीं पूर्ण है
याद रखना ..क्यूंकि
इसके बिना ..
शिव शिव नहीं शव हैं
अत:..
स्वीकार हो तभी देना तुम..
" महिला दिवस की शुभ कामना "
मुझे ..बस ..तभी .-- विजयलक्ष्मी
एक दिन नहीं .
पूरी जिन्दगी
पूरी कायनात
सारी धरती
पूरा अम्बर
एक हिस्सा नहीं
हर दाना
जन्म मृत्यु सा समरस
सुख दुःख दोनों में
विलास नहीं विकास में
कुछ शब्दों में नहीं
एक सम्पूर्ण विचार
आधी अधूरी नहीं
कर्तव्य को साथ लिए अधिकार में नर में इकारांत शक्ति का संचार बनना है
स्त्रीत्व के सुकोमल अभिव्यंजना के साथ सत्य के कठोर धरातल में
विराजती हुयी विस्तृत विरासत का हिस्सा ..
पूर्णत्व प्रदान करने की अभिलाषा लिए
उसी अहसास को जीवन देना चाहती है स्त्री
जो प्रथक नहीं ,
बंटा हुआ नहीं
टुकड़ा नहीं पूर्ण है
याद रखना ..क्यूंकि
इसके बिना ..
शिव शिव नहीं शव हैं
अत:..
स्वीकार हो तभी देना तुम..
" महिला दिवस की शुभ कामना "
मुझे ..बस ..तभी .-- विजयलक्ष्मी
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