इक दीप जलाया है इंतजार का ,
होगी सहर वतन में एतबार का ,
होगी सहर वतन में एतबार का ,
कीचड़ भरी राहे मेरे ही गाँव की
होगा कभी मौसम खुशगंवार सा,
होगा कभी मौसम खुशगंवार सा,
आशा-दीप यूँही बुझता नहीं देखो
पतझड़ बाद ही मौसम बहार का ,
पतझड़ बाद ही मौसम बहार का ,
गुमे दलाल कमिशन की ओट में
भूखा मरा वो रोटी का हकदार था ,
भूखा मरा वो रोटी का हकदार था ,
हमने देखा अँधेरा उसी के घर में
जो करता दीपकों का व्यापार था,
जो करता दीपकों का व्यापार था,
क्यूँ नफरत बनी उसी की खातिर
जिसे बस दुआओं से सरोकार था
जिसे बस दुआओं से सरोकार था
अजब रीत जिला-बदर था वही
खुद भी कानून का ही पहरेदार था .- विजयलक्ष्मी
खुद भी कानून का ही पहरेदार था .- विजयलक्ष्मी
No comments:
Post a Comment