"ए जिंदगी ,माना गम बहुत है जमाने में
लगी रहती है दुनिया भी, आजमाने मैं .
वक्त का सिला उसमे भरम अपनों का हों
तो क्या रखा है भला ऐसे जीने जिलाने में .
पत्थरों के बीच इंसान रहेंगे कहाँ सोच तो
पत्थर तो रहेंगे मशगूल उसे पत्थर बनाने में .
शिला न पूज ,हर शिला शिवाला नहीं जाती
लगी रहती है दुनिया भी, आजमाने मैं .
वक्त का सिला उसमे भरम अपनों का हों
तो क्या रखा है भला ऐसे जीने जिलाने में .
पत्थरों के बीच इंसान रहेंगे कहाँ सोच तो
पत्थर तो रहेंगे मशगूल उसे पत्थर बनाने में .
शिला न पूज ,हर शिला शिवाला नहीं जाती
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