क्या होता गर ये जिंदगी वाकयो में ही बँटी होती ,
वक्त में सहर से शाम तक की जिंदगी लिखी होती. - विजयलक्ष्मी
जिंदगी एक वाकया नहीं ,लगती लम्बी कहानी सी ,
झूठी होकर भी क्यूँ ,सत्य की कसौटी पर सुहानी सी .- विजयलक्ष्मी
जिंदगी के वाकये, वाक्यों के फलसफों में ,
हमशक्ल थी तो क्या , वो सत्य भी तो थी .- विजयलक्ष्मी
वक्त में सहर से शाम तक की जिंदगी लिखी होती. - विजयलक्ष्मी
जिंदगी एक वाकया नहीं ,लगती लम्बी कहानी सी ,
झूठी होकर भी क्यूँ ,सत्य की कसौटी पर सुहानी सी .- विजयलक्ष्मी
जिंदगी के वाकये, वाक्यों के फलसफों में ,
हमशक्ल थी तो क्या , वो सत्य भी तो थी .- विजयलक्ष्मी
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