Sunday 2 December 2012

समान शिक्षा का राग गुनगुनाती है सरकार



वैश्य की दूकान बनी है विद्या बिकती वैश्या समान ,
नोटों के बदले देखो खरीद ज्ञान को, करते बेडा गर्क ,
 सोच रहे कलदारपति भी कर लिया बहुत बड़ा है काम,
 अक्ल के कच्चों, अक्ल नहीं बिकती कैसे बनेगा स्वर्ग.
   अभी वक्त है समझो ,शिक्षा का बाजार न लगाओ तु
म ,
 कच्ची बुद्धि को बर्बाद क्यूँकर करते हों उसका बेडागर्क. 
     मेहनतकश बननेदो नौनिहालों को न लाचार बनाओ तुम .
   कच्ची नींव पर महल ठहरते नहीं है समझो इसका अर्थ .
  खुद के बालक अंग्रेजी स्कूलमें ,सरकारी का क्या अर्थ?.
   सब पढाकर देखो अपने बच्चों को बिठा टाटपट्टी के संग ,
 हाल बेहाल नित्य देखोगे तभी मालूम होगा अपना दर्द .
 - विजयलक्ष्मी

समान शिक्षा का राग बहुत गुनगुनाती है सरकार ,
मगर लाभकारी स्कीम दिखावे के सिवा कुछ भी नहीं यार.
देने का वादा दोपहर का खाना ,देखो तो चौपाए न खायेंगे ,
गरीब के बालक को मिडडे मील कह कर दिखाते है प्यार .
- विजयलक्ष्मी

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