"जाग जाओ सोने वालों ,अभी वक्त कहाँ है ,
देश जल रहा है अपनों के हाथों से ,
दिखावा देश प्रेम का ,देश को छलने की बातों से ,
जो अपने से दिखते तो है मगर होते नहीं ,
देश की नब्ज टटोलते तो है मगर रोते नहीं ,
शब्द आरक्षण काश शब्द ही बन गया होता ,
जिन्हें आरक्षण मिला ये नेता उनसे देश चलवाते नहीं ,
स्वार्थ की दूकान चल रही है आजकल ,
सफर लम्बा है यात्रा जरूरी है ये ...
जिंदगी की राहे कुछ जरूरी भी है ये ,
देश जल रहा है अपनों के हाथों से ,
दिखावा देश प्रेम का ,देश को छलने की बातों से ,
जो अपने से दिखते तो है मगर होते नहीं ,
देश की नब्ज टटोलते तो है मगर रोते नहीं ,
शब्द आरक्षण काश शब्द ही बन गया होता ,
जिन्हें आरक्षण मिला ये नेता उनसे देश चलवाते नहीं ,
स्वार्थ की दूकान चल रही है आजकल ,
सफर लम्बा है यात्रा जरूरी है ये ...
जिंदगी की राहे कुछ जरूरी भी है ये ,
फिर न कहना हम तन्हा है यहाँ ...
देश के नाम पर रोने बहुत कम है यहाँ ,
प्रेम तो है मगर देश से कम है ,,,
कलदार अगर मिल जाये तो चोरी भी करम है ,,
नए किससे तमाम लिखूँ कैसे ,
लकीरों पे कोई नाम लिखूँ कैसे ..
मेरी झोपडी में एक चिराग जला है ,,
उसमे देश प्रेम का बस एक ही राग पला है ,
तलवार खंजर कृपाण सबसे हुआ क्यूँ गिला है ,
जिंदगी फलसफों के बीच हकीकत का काफिला है ,
और हम बेदम से इन्तजार में ...
काश तुम भी यही हों तो देश की कोई नई खबर नुमाया हों जाये ..
ख्वाब जो पलकों पे सजे थे ,,,,सरमाया हों जाये
देश के नाम पर रोने बहुत कम है यहाँ ,
प्रेम तो है मगर देश से कम है ,,,
कलदार अगर मिल जाये तो चोरी भी करम है ,,
नए किससे तमाम लिखूँ कैसे ,
लकीरों पे कोई नाम लिखूँ कैसे ..
मेरी झोपडी में एक चिराग जला है ,,
उसमे देश प्रेम का बस एक ही राग पला है ,
तलवार खंजर कृपाण सबसे हुआ क्यूँ गिला है ,
जिंदगी फलसफों के बीच हकीकत का काफिला है ,
और हम बेदम से इन्तजार में ...
काश तुम भी यही हों तो देश की कोई नई खबर नुमाया हों जाये ..
ख्वाब जो पलकों पे सजे थे ,,,,सरमाया हों जाये
."
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विजयलक्ष्मी
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