Tuesday 4 December 2012

जन्म देकर शायद गुनाह किया था ...

वादे मुबारक और जज्बात बदल जाते हैं ,
माटी के पुतले क्यूँ नहीं माटी में बदल जाते है ,

माटी से निकाल माटी पुतले ही बना जाते हैं ,
जब कोई पार न बसी तो उन्हें खुदा बता जाते हैं .

भूख से बिलखते बच्चे नहीं दिखते जिनको ,
उन अमीरों की गोद में कुत्ते औलाद बन जाते हैं.

दूध पीकर बड़े हुए जिस गाय का खुद ही ,

आखिर में उसी को खुद कसाई को बेच आते हैं .

जन्म देकर शायद गुनाह किया था जिन्होंने ,
वो जन्मदाता भी बेटों पर ही बोझ बन जाते हैं .

गिरगिट सा रंग बदलने की बात क्या करना ,
पलभर में खुदा औ यमराज सा रंग बदल जाते है .- विजयलक्ष्मी

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