गजलों की तहजीब तवायफों से ही मिली है ,
पुरुष की दखलंदाजी जब बेलगाम होकर स्वार्थ पर चलती है ,
दर्द छलकता है जब दिल की गहराइयों से ,
शब्द शब्द निखत है मोती तब एक गजल बनती है
औरत की आबरू सर ए आम उछलती है ,
रहते हैवानियत के साथ इंसानी शक्लों में भेडिये ,
उनके ही इशारों पर तवायफों की बस्ती बसती है,
किसे गुरेज है घर की आबरू में रहे ,दामन हों पाक सबका ,
फिर एक ही मछली पूरा तालाब गंदा करती है ,
कुछ होती भी नहीं मगर दुनिया तो सबको बदनाम करती है .
दर्द छलकता है जब दिल की गहराइयों से ,
शब्द शब्द निखरता बन एक मोती तब एक गजल बनती है .- विजयलक्ष्मी
पुरुष की दखलंदाजी जब बेलगाम होकर स्वार्थ पर चलती है ,
दर्द छलकता है जब दिल की गहराइयों से ,
शब्द शब्द निखत है मोती तब एक गजल बनती है
औरत की आबरू सर ए आम उछलती है ,
रहते हैवानियत के साथ इंसानी शक्लों में भेडिये ,
उनके ही इशारों पर तवायफों की बस्ती बसती है,
किसे गुरेज है घर की आबरू में रहे ,दामन हों पाक सबका ,
फिर एक ही मछली पूरा तालाब गंदा करती है ,
कुछ होती भी नहीं मगर दुनिया तो सबको बदनाम करती है .
दर्द छलकता है जब दिल की गहराइयों से ,
शब्द शब्द निखरता बन एक मोती तब एक गजल बनती है .- विजयलक्ष्मी
No comments:
Post a Comment