ए मुहब्बत बता तुझको आवाज दूँ कैसे ,
बंद दरों के उस पार आवाज अपनी पहुचाऊं कैसे .
है गुनाह झांकना भी जिस गली में मेरा ,
बताओ खुद ही उस जगह आशियाना बनाऊँ कैसे .
बेसबब कह दूँ याद आते नहीं गर तुम,
पूछ लो दिल से झूठी ये बात तुमको कह जाऊँ कैसे.
बंद है हर गली के मुहाने जान लो तुम ,
हाँ मुहब्बत हों गयी,कहो ये बात तुमको बताऊँ कैसे.
मुस्कुराना चाहती हूँ मैं भी ,सच है मगर
मुस्कुराहट पाकीजा शबनम सी लबों पर लाऊँ कैसे. --विजयलक्ष्मी
बंद दरों के उस पार आवाज अपनी पहुचाऊं कैसे .
है गुनाह झांकना भी जिस गली में मेरा ,
बताओ खुद ही उस जगह आशियाना बनाऊँ कैसे .
बेसबब कह दूँ याद आते नहीं गर तुम,
पूछ लो दिल से झूठी ये बात तुमको कह जाऊँ कैसे.
बंद है हर गली के मुहाने जान लो तुम ,
हाँ मुहब्बत हों गयी,कहो ये बात तुमको बताऊँ कैसे.
मुस्कुराना चाहती हूँ मैं भी ,सच है मगर
मुस्कुराहट पाकीजा शबनम सी लबों पर लाऊँ कैसे. --विजयलक्ष्मी
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