Monday, 17 December 2012

सच है मगर ...

ए मुहब्बत बता तुझको आवाज दूँ कैसे ,
बंद दरों के उस पार आवाज अपनी पहुचाऊं कैसे .

है गुनाह झांकना भी जिस गली में मेरा  ,
बताओ खुद ही उस जगह आशियाना बनाऊँ कैसे .

बेसबब कह दूँ  याद आते नहीं गर तुम,
पूछ लो दिल से झूठी ये बात तुमको कह जाऊँ कैसे.

बंद है हर गली के मुहाने जान लो तुम ,
हाँ मुहब्बत हों गयी,कहो ये बात तुमको बताऊँ कैसे.

मुस्कुराना चाहती हूँ मैं भी ,सच है मगर  
मुस्कुराहट पाकीजा शबनम सी लबों पर लाऊँ कैसे.
--विजयलक्ष्मी 

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