Saturday, 12 December 2015

" सहमी है चिरैया आंगन की ... देहलीज भी घबराई सी "



" उदास रातों को सजा दिया है यादों के सीप में मोती बना,
और स्वाति की बूंदों ने पलकों पर बन्दनवार सजा डाला

सहमा है सच और झूठ सडकों से संसद कर घूम रहा है ,
अजब हैरान बस्ती है स्वार्थ को भी वजनदार बना डाला

किसान करता रहा आत्महत्या दशको से भूखे प्रदेश में
महाजन की चमकी महाजनी दलाली का बाजार बना डाला

सहमी है चिरैया आंगन की ... देहलीज भी घबराई सी
पलक भर की दूरियां सदियों लम्बा इन्तजार बना डाला "
-------- विजयलक्ष्मी

1 comment:

  1. एक यथार्थवादी रचना की प्रस्‍तुति।

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