Friday, 11 December 2015

न बचे कोई लम्हा खौफ ए रुसवाई मेरे लिए "

" रंग सिंदूरी उतरा भोर का बनकर मेरे लिए ,,
वो बादलों संग प्रेम-वर्षा भिजवाई मेरे लिए .
सर्द मौसम में रजाई कोहरे की आई मेरे लिए ,,
गुलों से बगिया धरती की सजाई मेरे लिए .
गंगा की धारा मन-नैया बनी पावन मेरे लिए,,
बना जलते दीप की नैया तैराई मेरे लिए.
वो लाली कपोलों पर उभरी साँझ की मेरे लिए ,,
वो कजरारी रात काजल बनाई मेरे लिए .
इक सेज ख्वाबों की पलको में बसाई मेरे लिए ,,
हाँ , बड़ी खूबसूरत ख्वाबगाह बनाई मेरे लिए .
बहुत खुश हूँ नम मौसम आँखों के भेजे मेरे लिए ,,
न बचे कोई लम्हा खौफ ए रुसवाई मेरे लिए ".---- विजयलक्ष्मी

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