" जिस्म की हैसियत भी इक उपकरण सी हो गयी है आजकल,,
स्वार्थ भरी जिन्दगी के लिए दौलत ए दुनिया को रुसवा किया ||
स्वार्थ भरी जिन्दगी के लिए दौलत ए दुनिया को रुसवा किया ||
झूठ बोला तो उसीसे जिसने बोलना सिखाया तेरी जुबान को ,,
बेजार करता है वही दामन तुझे ,,तेरी चोट ने जो फतवा दिया||
बेजार करता है वही दामन तुझे ,,तेरी चोट ने जो फतवा दिया||
बोझ लगना लाजिमी है जर्जर हुयी देह भला किस काम की ,,
बेवकूफी भरे थे फैसले उनके तेरी जरूरत पर स्वास्थ्य लुटवा दिया ||
बेवकूफी भरे थे फैसले उनके तेरी जरूरत पर स्वास्थ्य लुटवा दिया ||
देंगे क्या बुढापे में खांसकर घर भर को परेशां कर रहे हैं आजकल
गिरवी घर को छुड़ाना फजूल खेत बकाया था कल बिकवा दिया || "----- विजयलक्ष्मी
गिरवी घर को छुड़ाना फजूल खेत बकाया था कल बिकवा दिया || "----- विजयलक्ष्मी
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" बताओ ....सुरत ए हाल दिल का क्या लिखूं
कोई धडकनों के अहसास पहचनता ही नहीं
नगमे सुने उड़ते हवा में महक का क्या लिखूं
कोई सीरत ए लहू की बानगी मानता ही नहीं "
------ विजयलक्ष्मी
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