Tuesday 15 July 2014

" जिम्मेदारी मात्र औरत की ही है ? "

हाशिये पर रख छोड़ी 
जिन्दगी के 
तिनका भर 
सहारे पर 
जिन्दा हैं ,
बदलते समय की ढाल 
के 
सवाल पर शर्मिंदा हैं 
अखबार बवाल करता मिला कहीं 
कहीं कोताही कानून की 
ईमान की दुकान पर
सच रोया ज़ार ज़ार
मोल
जमीर का
खुद बिका हुआ
इक शख्स लगा रहा था
क्षण क्षण
खुद को खरीददार बता रहा था
कुछ टुकड़े उठा लिए मैंने ..
इल्जाम लगा रहा था
अब हर कोई बदलने की फ़िराक में
कसम है
"तुम्हे "
वक्त का क्या है पल पल बदलता है
माया क्षण भंगुर
देह नश्वर ..ज्वलनशीलता धारे
मुट्ठीभर लकडियो के साथ
भस्मीभूत
विसर्जन जिन्दगी के सफर में
टूटकर बिखरे भी तो खनक होगी
कांच सी
और उठाओगे गर
लहुलुहान होगी अंगुली
किरचे चुभेंगी
जख्म हरे रहंगे नासूर से
जज्बात की झरना ...या
या स्त्रोत पत्थर फोड़कर बह उठा है
अब भागीरथ कौन है यहाँ
किसे मापना है समन्दर का नवीन पथ
सावित्री या सीता ...द्रोपदी या कोई पतिता
पुरुष प्रधान समाज में ..
किसने बनाये वो रास्ते..जो लौटते ही नहीं घर से निकलकर
अधिकार सिर्फ तुम्हे ही क्यूँ
क्या कही डरता तो नहीं है समाज औरत के व्यक्तित्व से
इसीलिए बंधन ...कड़े और कड़े ,,
सिंदूर खुद भी तो लगाये ,
पहने नाक कान के बंधन इज्जत बना दी गयी चूड़ियों में कांच की
चरित्र देहलीज के भीतर भी शर्मिंदा सा क्यूँ होता है
आँखे सिकती हैं क्यूँ देह...फिर भी सफेदपोश महान आत्मा
क्या ईमान जमीर चरित्र जरूरत भूख ...
जिम्मेदारी मात्र औरत की ही है ? --- विजयलक्ष्मी

3 comments:

  1. क्या ईमान जमीर चरित्र जरूरत भूख ...
    जिम्मेदारी मात्र औरत की ही है ?
    बेहतरीन

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  2. किसने बनाये वो रास्ते..जो लौटते ही नहीं घर से निकलकर
    अधिकार सिर्फ तुम्हे ही क्यूँ

    बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

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  3. Wakayi lajawaab...... Marm ko chukar guzari ye panktiyaan....

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