Thursday, 21 March 2013

किस सोच में खो गए खुशबू से महक उठे ,

किस्सा ए गुफ्तगू तुम खुद से भला कब ,
हर वक्त थे वहीं पर तुम याद किये थे जब.

तुम भी समझा किये वो बज्म थी हमारी 
रहे किसी भी बज्म में तुमसे जुदा थे कब.

नजूमी का बहाना तुम इतना भी न समझे,
हर बात थे तुम, रंग ए स्याही सिले थे जब.

किस सोच में खो गये खुशबू से महक उठे,
शब ए ख्वाब में भी तुम दिखाई दिए थे जब.

तुम रहे कल से ही वाबस्ता आजतक भी ,
हम तो कल का कोई ख्वाब सजाते थे तब
..-- विजयलक्ष्मी

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