Friday, 1 March 2013

अमावस सा बसर क्यूँ है ...

क्या बेवजह चर्चा ए मुहब्बत उड़ रहे है बाजार में ,
आग फैली कैसे ,ये बता , माचिस दिखाई किसने .


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तौबा ,ये सबक याद नहीं होता ,जाने क्यूँ ?
चाँद में दाग भी हों और चाँदनी मरती भी उसे पे है .


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इंसानी फितरत भी अनोखी होती है जनाब ,
कोई बिकने को तैयार है खरीदे तो सही ,
किसी किसी की कीमत भी नहीं आंक पाते आप .


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उजले से दिन पर भी अंधेरों का असर क्यूँ है ,
कौन मंजिल है है यहाँ ,हर कदम सफर क्यूँ है .
रात तन्हा जाती है अमावस सा बसर क्यूँ है ,
राह सूझती नहीं कोई बता, छाया कहर क्यूँ है
....विजयलक्ष्मी 

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