Tuesday, 19 March 2013

मौत से कैसे बच पाओगे ..

कितना बांटोगे दुनिया को मजहबी रंग में ,
शताब्दी ,शताब्दी ,वर्ष ,माह दिन ...
और अब हर वक्त बंट रहा है आदमी ,
ईमान खो रहा है संग जमीर मर गया सा लगता है ,
उठना ही होगा सत्य को .. जागना होगा ..
मर गया तो मर जायेगी जमीं ..
इंसानियत की छाती को अपने गंदे इरादों के हल से मत जोतो ..
नफरत की फसल मत लहराने दो ..
हर हाथ में बंदूक नजर आएगी ..
मुस्कुराहट हर लब का एक ख्वाब हों जायेगी ..
न बांटों खुद को ..
न पीढ़ियों को नफरत के रंग में बोरो ,
मेरी मौत तो हो चुकी मुर्दा हूँ ..
तुम सोचो जिन्दा लोगो ..क्या हश्र होना बाकी है जिंदगी का ..
फांसी ..भ्रष्टाचार व्यभिचार ...अनाचार का रंग कैसा होगा ..
लग जायेगी आग धरा पर फिर जीवन कैसा होगा ..
बलिदान नहीं दोगे कत्ल हों जावोगे..
मौत से कैसे बच पाओगे ..
इससे अच्छा है मर जाओ ..
सत्य के लिए और सत्य ही जियो ..सत्य को गाओ
..विजयलक्ष्मी 

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