"सरकारी हलफनामा सुनो ...कलम की जुबानी ..
लग गयी कीमत अस्मत की औरत की सरकारी हिसाब में ,
लिख कर रख लो सब अपने घर की किताब में ,
सुरक्षा की हिस्सेदारी का सबब कोई नहीं है अबतो ,
उम्र गयी डूबने भंवर में ,खरीद ले भावनाए खुलेआम अबतो,
जिस्म को उठाओ ठिकाने लगाओ दो लाख रूपये कीमत लगाई है ,
जाने इन नेताओ के पास क्या ऐसी ही कमाई है .
तस्करी औरत और बच्चों की कीमत भी एक लाख लगेगी ,
मर गए हादसे में तो दो लाख मिल जायेंगे ..
क्या ...अपनी बेटी की इतनी ही कीमत लगाएंगे
बहुत भूखे है ये इनके घरों की अस्मत की कीमत यही लगवाओ ..
चोट लगी तो बीस हजार ले जाओ ,
तेजाब डलवाओ और डेड लाख की कमाई होगी ,
घर के नादान की जिंदगी की कीमत लगाई है दो लाख रूपये ,
शरीर गया काम से तो खाली हाथ नहीं जाओगे ..
बीस हजार से पचास हजार तक पाओगे ..
लग गयी कीमत सर ए आम अब तो ..
कोई दूसरों के गुनाह की एक कीमत और बता जाना ..
जब जमीर खुद्दारी की गवाही दे तो .
पैसे वाले की तलब को चाकू भी दिखा जाना ,,
मिल जाये भेडिया इंसानी कपड़ों में ..
मरना तो पडेगा ही पर "उसे" जिन्दा मत छोड़ जाना
साँस की अंतिम तहरीर तक ..इस कीमत को कीमत जरूर चुका जाना ..
क्यूंकि तू औरत है औरत ही बनकर रहना है तुझे ..
इज्जत औरत की न हों नीलाम परचम यही लहराना है तुझे ..
वाह री सरकार ...
तेरी नजरों में क्या है औरत की बिसात " -- विजयलक्ष्मी
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