जिन्दा होती है रूह देह मरने के बाद ही ,
नेह-नदी में तैरती तरंगो ने आवाज दी
नेह-नदी में तैरती तरंगो ने आवाज दी
इम्तेहाँ अहसास के रहे दर्द में पगे हुए
देह से इतर उडी रागनी वही साथ थी
देह से इतर उडी रागनी वही साथ थी
श्रृंगार अंगार का चिंगारियां भभक उठी
रौशनी दिखी मगर सरहद के पार थी
रौशनी दिखी मगर सरहद के पार थी
बह रही जो आग थी बस्तियां जल गयी
बंदूकों के साये में जिन्दगी अनाथ थी
बंदूकों के साये में जिन्दगी अनाथ थी
चौखट पर बैठकर दीप जलाए राह में
रौशनी बिखरे राह में इतनी सी बात थी --- विजयलक्ष्मी
रौशनी बिखरे राह में इतनी सी बात थी --- विजयलक्ष्मी
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