आजकल फेसबुक पर महिलाओं को देखने की कानी दृष्टि कुछ ज्यादा ही प्रखर हुई और आक्षेप सीधे तौर पर औरतो की महत्त्वाकांक्षाओं को उजागर किया जा रहा है .......जैसे वो आदमियों की पिट्ठू बनने के सिवा स्वयम कोई अस्तित्व ही नहीं रखती ........यूँभी ,, पुरुष समाज में औरत का आगे बढना भला बर्दाश्त हो सकता है लगाओ इल्जाम और करो शर्मिंदा ...यही एक तरीका बचता है ..क्यूंकि कोई और रंग नहीं दिखाई देता ...जो व्यवसाय में उच्च स्थान पर नौकरियों में है और राजनीति में है ....इल्जाम एक वो सब किसी न किसी का पहुंचा पकडकर ही पहुंची है .......वह री पुरुष पालित प्रवेश के निजामो ......कभी खुद में भी झांककर देखो ...खुद में कितने सच्चे हो ..कितने सुंदर और श्वेत ह्रदय के हो .... क्यूंकि पुरुषो के हिसाब से औरत तो रोटी बनाने के लिए ही पैदा हुई है और उसका स्थान है चारदीवारी के भीतर सुरक्षा के नाम पर प्रताड़ना ,,और तालाबंदी ..समझ में नहीं आता जब पुरुष इतना सही और सीधा है तो समाज खराब कैसे हुआ ...सभ्यता होने के दावो के भीतर कभी खुद को झाँक लो ..असलियत सामने आ जाएगी सभी की ... चंद घंटो की बच्ची ने किस का हाथ पकड़ा था उसे मौत के घाट उतार दिया वो भी नृसनश्ता के साथ ..( हाथ पैर तोड़ मरोड़कर कपड़े में लपेटकर )मार दिया था ...उस बच्ची ने किसी पुरुष का क्या बिगाड़ा था जिसे कूड़े के ढेर से निकलकर कुत्ते ने मारकर खा लिया ...शायद उन्होंने भी अपने लिए दौलत और पोस्ट के लिए कुछ टी किया होगा किसी पुरुष से ,, किरण की राजनैतिक लालसा ने ही शायद उसे आई पी एस करने के लिए प्रेरित किया था ......जिसनी डॉक्टर है उन्हें दौलत की ललक यहाँ तक खिंच लाई ...और इंजिनियर लडकिय या औरते खुद को फैक्ट्रियो का मालिक देखने की जिद में यहाँ तक चली आई .....बेवकूफ थी उडनतश्तरी पी टी उषा जो अंतर्राष्ट्रीय खेलो में स्थान बना पायी ......और मेरिकोम को किस पिट्ठू ने मेंडल दिलवाए है ये भी उजागर होना चाहिए ...सुनता विलियम ने किसका हाथ पकड़ा और नूई भी जरूर किसी के साथ चिपकी होगी .... क्यूंकि राजनीति में औरते बेवकूफ है ....पुरुष सभ्यता की व्यग्य और कटु आलोचना यही प्रदर्शित करती है ...मतलब औरत को सैम दम दंड भेद ..घर के भीतर घसीटो ..और बंद कर दो तालो में ..क्यूंकि उसे आदमी के सामने बिस्तर पर बिछावन और गर्म रोटी सेंकने के सिवा कुछ नहीं आता ... इंद्रा गाँधी ने भी किसी को तो राजनैतिक पति बनाया ही होगा ...और मायावती को तो कौमार्य परिक्षण की सलाह भी दे चुके है देने वाले ....सभ्यता को जन्म देने वाली औरत आज अपनी ही पहचान की मोहताज है |
इसी कानी मानसिकता के चलते कवियत्री महादेवी वर्मा को उनके जीते जी किसी ने भी उनका सम्मान नहीं किया ...आज उनकी मृत्यु के पश्चात उन्हें छायावादी युग का एक मुख्य स्तम्भ माना गया |
यदि इस बात को ऐसे कहा जाए पुरुष अपने को सफल होने के लिए औरत का हाथ पकड़ते हैं क्यूंकि पुरुष को पुरुष पर भरोसा नहीं होता जितना औरत पर होता है |
..... वाह री पुरुष मानसिकता .......तेरी जय हो |--------- विजयलक्ष्मी
इसी कानी मानसिकता के चलते कवियत्री महादेवी वर्मा को उनके जीते जी किसी ने भी उनका सम्मान नहीं किया ...आज उनकी मृत्यु के पश्चात उन्हें छायावादी युग का एक मुख्य स्तम्भ माना गया |
यदि इस बात को ऐसे कहा जाए पुरुष अपने को सफल होने के लिए औरत का हाथ पकड़ते हैं क्यूंकि पुरुष को पुरुष पर भरोसा नहीं होता जितना औरत पर होता है |
..... वाह री पुरुष मानसिकता .......तेरी जय हो |--------- विजयलक्ष्मी
No comments:
Post a Comment