Saturday, 3 January 2015

" हाथ में बंदूकें औ बातो में दुराव भरा है जिनके ,"

दिखते हैं कितने ही रंग मगर खुद में बेजार हैं ,
हर दूसरे आदमी के हाथ में देख लो हथियार हैं ||

यूंतो पिता के दिल की धडकन होती हैं बेटिया,
दहेज दानव के उत्पीडन से पिता भी लाचार हैं ||

यूंतो बिन औरत के ये दुनिया नहीं चलने वाली ,
देह बाजार हो या हो विज्ञापन बिकती नार है ||

फूल की बात करने वाले भी कली को नोचते हैं ,
पुरुष कैसे है वो करते बच्ची संग बलात्कार हैं ||

जुल्म की बात करूँ या सुनाऊँ ज्ञान गीता का ,
वो भीतर झांकते कब हैं ,खरीदने को तैयार हैं ||

हाथ में बंदूकें औ बातो में दुराव भरा है जिनके ,
बिलखती मानवता आज उन्ही से शर्मसार है ||
---- विजयलक्ष्मी

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