" ए चाँद जरा ठहर तुझ बिन बसर नहीं ,
न निकले शम्स गर होती सहर नहीं ||
काफिया मिलाया एसे रदीफ़ खो गया,
लिखे किस पर गजल कोई बहर नहीं||
माटी के घर बेच अट्टालिका खड़ी की,
गली कुचो में बिखरा अपना शहर नहीं ||
तुम्हे ही पुकारा किये नाखुदा बनाकर ,
थी कश्ती भंवर में दिखी कोई लहर नहीं ||"
---- विजयलक्ष्मी
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