Monday 26 January 2015

" अनपढ़ लोग भला किताबी उसूल क्या जाने "

" समन्दर लीलने की फिराक में ,
बैठा है पंखे फैलाए कोई तो समा ले जाए 
जीवन डोर टूट भी जाए 
पतंग उडती है आकाश मगर डोर रहे हैं हाथ 
टूटकर जिन्दा रहे कहाँ 
मन्दिर में प्रवेश मना है ..यही आज हमने सुना है
एकलव्य की कथा सुनी थी ...हाँ सुना था अंगूठा मांग लिया था
समर्पित किया था एक अंगूठा उस युग में
अंगूठा मांग ही लेते हैं ...अक्सर कुलीन समाज के सभ्य जन
एकलव्य ने न उस युग में मना किया न इस युग में मना करेगा
काटकर थमा देगा अपने ही हाथो से अपने ही हाथ का अंगूठा
और अर्जुन को घोषित कर दिया गया सर्वोत्कृष्ट तीरंदाज
द्वापर की बात नहीं शिक्षा की रक्षा दौलत के बूते राजपाठ के नामपर
सन्चितो की धरोहर को हाथ लगाना मना है आज भी
तहजीब सीखनी होगी ..
साहित्य ... का अ आ नहीं जानने वाले साहित्य लिखे कैसे
अनपढ़ लोग भला किताबी उसूल क्या जाने
सुंदर सा रंग दिखा आकार प्रकार रंग औ रोगन से ललचाये थे
खाली जेब थे क्या करते वंचित हम ..
आढती की डांट सुनकर सर नीचा किया लौट आये थे  "  
------ विजयलक्ष्मी

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