दर्द किसी का भी हो
मौत कही भी कहर ढहाए
गोलिया किसी भी देह को छलनी करे
आंसू एक जैसे गिरने चाहिए
उत्सव पर दर्द हो बिखरा दर्द के श्वेत पुष्प झरने चाहिए
दोगलापन कहू किसका मातम है मेरे घर का
मातम पर घंटिया नहीं मोमबत्तियां ही जलनी चाहिए
" क्रिसमस मेरी "है तो तुम्हारी कैसे हुयी सोचना
पेशावर की मौत दुनिया को आंसू थमा गयी
आसाम की मौत पर भी छाती छलनी होनी चाहिए
न दर्द बिखरा न आंसूओं का सैलाब आया
जिन्दगी जिंदगी में अंतर क्या फानी होनी चाहिए
यहाँ भी फूल थे आंगन के यहाँ भी जिन्दगी खोई किसी के लाल ने
दरारे खींचने वालों तुम्हारी अदाकारी भी फजीहत होनी चाहिए
दौलत के पुजारी बने मिडिया वाले सभी
सत्य को उजागर करे मिले मान्यता वरना मुमानत होनी चाहिए ----- विजयलक्ष्मी
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