Friday, 29 November 2013

नाच उठा मन मयूर,

अब हवा बन उड़ गया गम ...नजरों से दीदार हुआ जब ,
तुमबिन दर्द भी बरसा बादलों सा तेरा इंतजार हुआ जब.

तुमको कितना अपना कह दूँ मुश्किल इजहार हुआ अब,
तुम बिन इन सांसों का आना, जीना ही बेकार हुआ अब .

मतलब क्या समझाऊँ तुमको ,पल पल बेकरार हुआ जब,
नयनों को दर्पण कर बैठे हम ,नजरों से इजहार हुआ जब .

जख्म करीने से बैठे थे मन के आँगन में सत्कार हुआ जब ,
झूल गया मन सागर बन, ख्वाब रुपैहला पतवार हुआ जब .

चटक चाँदनी बिखरी अंगना ,खुद अपना संसार हुआ जब,
नाच उठा मन मयूर, पतझड बिछड़ा जीवन बहार हुआ जब....विजयलक्ष्मी 

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