क्या वतन से मुहब्बत नहीं की ,
उल्फत की कभी सोहबत नहीं की .
जिन्दगी चलते रहे संग तुम्हारे
तुमको भी कभी तोहमद नहीं दी
निगेहबानी में जीते रहे खुदाई
फकीरी भा गयी ,दौलत नहीं ली
रोटी को मोहताज हुए वतनपरस्त
गद्दारी की मगर सोहबत नहीं की
मौत की अदावत भी भायी बहुत
पलभर की मौत ने मोहलत नही दी .- विजयलक्ष्मी
उल्फत की कभी सोहबत नहीं की .
जिन्दगी चलते रहे संग तुम्हारे
तुमको भी कभी तोहमद नहीं दी
निगेहबानी में जीते रहे खुदाई
फकीरी भा गयी ,दौलत नहीं ली
रोटी को मोहताज हुए वतनपरस्त
गद्दारी की मगर सोहबत नहीं की
मौत की अदावत भी भायी बहुत
पलभर की मौत ने मोहलत नही दी .- विजयलक्ष्मी
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