Wednesday, 6 November 2013

मनाना आता गर तो ..

मनाना आता गर तो मना लेते तुमको हम ,
जानते हैं यूँही रूठना तुम्हे भाता है बहुत .

सरहद पर अश्क ,अश्क में अक्स तुम्हारा ही 
झूठे बोला मुझसे,तैरना तुम्हे भाता है बहुत .

एक समन्दर है अन्दर तेरे मेरे अहसास का 
कश्ती सी यादें है , तुफाँ भी तो आता है बहुत .

डूबता उतरता है सूरज यादों के समन्दर में ही 
जाने सहर कब होगी, इन्तजार सताता है बहुत .

उलझने दुनियावी दिल समझना ही नहीं चाहता
पिया अहसास ए दरिया पर प्यास बताता है बहुत .- विजयलक्ष्मी

No comments:

Post a Comment