Sunday, 17 November 2013

मुस्काकर मिलती है जिन्दगी

ये महल दुमहले क्या जाने जीवन की रंगीनियाँ 
भूखे नंगे पलनों में मुस्काकर मिलती है जिन्दगी

धन के ढेर लगाने वालो धन की खातिर मर जाओगे 
हम चाक गिरेबाँनो से भी मुस्काकर मिलती है जिन्दगी 

भूख अजब ,तुम्हे भूख नहीं पर रोटी के अम्बार लगे 
भूखे पेट करे गुजर पर मुस्काकर मिलती है जिन्दगी 

नैनो पर अश्क लिए फिरते हंसता है दिल रो रो कर भी 
ऐशो-आराम मुबारक ,हमसे मुस्काकर मिलती है जिन्दगी

तुम्हे चैन नहीं हम फकीर भले काँटों संग रैन बसर अपनी
फूल मिले न पर काँटों संग भी मुस्काकर मिलती है जिन्दगी.- विजयलक्ष्मी 

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