कैसे कहते आंसू अपने मन मे बर्फ हुए बैठे हम
तुम को दुःख में देख न पाते रहे मुस्काते बैठे हम
तुम जाने अनजाने ही अब साथ हमारे होते हो ,तुम को दुःख में देख न पाते रहे मुस्काते बैठे हम
बंद रहे या खुली पलक नैनो में ही रहते हो
दिल का वीराना चहक उठा जब तीर समन्दर बैठे हम
तुम समझे सन्नाटा है संवर दर्द पीर में बैठे हम
जो चुनर तुमने भेजी उसको मन पे लपेट लिया
बिखरा बिखरा दिल का कोना खुद में हमने समेट लिया
कितने तुफाँ कितनी आंधी खुद में समेटे बैठे हम
झूठ कहो तो तुम जानो दर्द खुद ही समेटे बैठे हम
हाल हमारे इक जैसे है कितना छिपाओगे खुदको
रो लेते हैं दोनों गले मिल कितना बहलाओगे खुदको.- विजयलक्ष्मी
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति 22-11-2013 चर्चा मंच पर ।।
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