जल रहा दीप सा मुझमे मुझे ही बाती बना ,
सूरज हंसा औ गगन के कंधे पर सर रख सो गया .- विजयलक्ष्मी
साज, ईमान औ मुहब्बत तो लय तलाश लेती कर है ,
सहरा को बहारों के हर रंग से भीतर तलक भर देती है..विजयलक्ष्मी
सूरज हंसा औ गगन के कंधे पर सर रख सो गया .- विजयलक्ष्मी
साज, ईमान औ मुहब्बत तो लय तलाश लेती कर है ,
सहरा को बहारों के हर रंग से भीतर तलक भर देती है..विजयलक्ष्मी
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