Friday, 29 November 2013

सूरज हंसा औ ..

जल रहा दीप सा मुझमे मुझे ही बाती बना ,
सूरज हंसा औ गगन के कंधे पर सर रख सो गया .- विजयलक्ष्मी 





साज, ईमान औ मुहब्बत तो लय तलाश लेती कर है ,
सहरा को बहारों के हर रंग से भीतर तलक भर देती है..विजयलक्ष्मी 

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