Thursday 21 November 2013

रजाई फट गयी तो क्या

एक चिंगारी जो दबी पड़ी है आज भी राख में !
थोड़ी तो कर कोशिश बदल जाएगी आग में !!

रजाई फट गयी तो क्या ,घुटने पेट से लगा !
ये क्या कम है आज भी एक गुदड़ी है भाग में !!

हर चौराहे जले अलाव पर जमीर तो न जला ! 
फकीर ने कहा कब जल नफरत की आग में !!

रख तेल स्नेह का ले कर्म की बाती साथ में !
चल जलाते है अँधेरी राह पर चिराग साथ में !!

रौशनी ईमान की जले जमीर हो धुला धुला !
नफरत भूले रास्ता ,रहे मुहब्बत से साथ में !! - विजयलक्ष्मी

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