एक चिंगारी जो दबी पड़ी है आज भी राख में !
थोड़ी तो कर कोशिश बदल जाएगी आग में !!
रजाई फट गयी तो क्या ,घुटने पेट से लगा !
ये क्या कम है आज भी एक गुदड़ी है भाग में !!
हर चौराहे जले अलाव पर जमीर तो न जला !
फकीर ने कहा कब जल नफरत की आग में !!
रख तेल स्नेह का ले कर्म की बाती साथ में !
चल जलाते है अँधेरी राह पर चिराग साथ में !!
रौशनी ईमान की जले जमीर हो धुला धुला !
नफरत भूले रास्ता ,रहे मुहब्बत से साथ में !! - विजयलक्ष्मी
थोड़ी तो कर कोशिश बदल जाएगी आग में !!
रजाई फट गयी तो क्या ,घुटने पेट से लगा !
ये क्या कम है आज भी एक गुदड़ी है भाग में !!
हर चौराहे जले अलाव पर जमीर तो न जला !
फकीर ने कहा कब जल नफरत की आग में !!
रख तेल स्नेह का ले कर्म की बाती साथ में !
चल जलाते है अँधेरी राह पर चिराग साथ में !!
रौशनी ईमान की जले जमीर हो धुला धुला !
नफरत भूले रास्ता ,रहे मुहब्बत से साथ में !! - विजयलक्ष्मी
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