Friday, 22 November 2013

चरित्र कहाँ है न मालूम,,,

चरित्र कहाँ है न मालूम लगता हैं गिर गया है कहीं ,
सिलवटों को देखा तो मजबूरियां और तुम दोनों थे वही .- विजयलक्ष्मी




जिन्दगी रंग बदलती है कभी आजाद पंछी सी 
कभी तालों में बंद रहती कभी तडपाती बरछी सी .- विजयलक्ष्मी

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