Wednesday 1 January 2020

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जीना सीखने के बाद भी आहत आहट रुला जाती है ,,
जिन्दगी अहसास के फूल पलको पर खिला जाती है ।।   ---- विजयलक्ष्मी


इश्क औ गम का रिश्ता भला रिसता क्यूँ हैं ,,
मुस्कुराकर इश्क की चक्की में पिसता क्यूँ है ||    --- विजयलक्ष्मी































नम मौसम को बदलती है उमड़ते अहसास की गर्म चादर 
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जिसे ओढकर अक्सर मातम भी खुशियों का राग सुनाता है।।  ----   विजयलक्ष्मी




और मुस्काती हूँ बैठ ख्वाब के हिंडोले मैं ,,
रच बस मन भीतर पुष्पित रगों के झिन्गोले में | 
विजयलक्ष्मी

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