Thursday, 29 December 2016

" तेरे इश्क ने जिन्दा रहने का मुझे जर्फ़ दिया ,इजहार दिया "

यूँ इश्क हुआ कुछ याद नहीं बस अपना सबकुछ वार दिया ,
मैं जिन्दा इंसा था ही कब , फिर कैसे कहूं तूने मार दिया ||

खार एक नागफनी का था कोई दुनिया ख्वाब में खिली नहीं
काश तुम कभी न जान सको किस सुख ने मुझे अजार दिया||

सजी सजाई दुनिया कैसी , मेरी जात नहीं मेरा हाल नहीं
तेरे इश्क ने जिन्दा रहने का मुझे जर्फ़ दिया ,इजहार दिया .||
------- विजयलक्ष्मी


नेह के अंतिम छोर पर खड़े हैं ,,
देह के उस पार रूह की पहचान पर अड़े हैं 
देह के रिश्तों में नेह रुकता भी कहाँ है 
रिश्तों के दंश ही न्याय की गुहार में पड़े हैं
|| --------- विजयलक्ष्मी

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