" आजकल आत्महत्याओ का दौर जारी है
कही किसान तो कही पत्रकारिता मारी है
कहीं इंसानियत कहीं धार्मिकता जारी है
कहीं सियासत से भी मार्मिकता भारी है
अपने गिरेबान में झांकते नहीं हैं जो लोग
उनका ही इल्जाम का छिडकाव जारी है
सत्तर बरस का हवन कुण्ड कुंडा हो गया
अढाई बरस लग रहे सबको ज्यादा भारी है
सुना है अमर्त्यसेन अर्थशात्री बड़ा भारी है
वह नोबेल पुरुस्कार प्राप्त ज्ञान भंडारी है
चार फैक्ट्री लगाकर उठाया नुकसान भारी है
विश्वव्यापी अर्थशात्री अर्थव्यवस्था को डूबा गये
दस बरस बनकर कठपुतली सरकार चला गये
शिक्षा में कहते झोल हुआ बहुत बड़ा है ,,
इतिहास तो सारा ही गलती और गुनाहों से भरा है
पटेल से छिनकर गद्दी नेहरु को देने पर गांधी अड़ा है
नेताजी सुभाषचंद से अध्यक्ष पद छुड्वाया था ,,
मोतीलाल नेहरु से मिली दौलत का कर्ज चुकाया था
आजाद के मुखबिर को क्यूँ प्रधानमन्त्री बनवाया था
भगतसिंह को किसने समय से पहले फांसी चढवाया था
जतिन दास से देशभक्त को किसने आतंकी बताया था
भारत माँ की छाती चीर सडक का नक्शा किसने बनवाया था
आज उन्हें चिंता किसकी है जिसने पीढियों नोचा है
माँ की ममता की कीमत क्या कब किसने सोचा है
गद्दारों के वंशज यहाँ गद्दी पर मौज उड़ाते हैं
तात्याँटोपे के वंशज चाय बेच पेट की आग बुझाते हैं
लक्ष्मीबाई को धोखा देकर चैन अमन से जीने वाले ,,
देशभक्त हुए कैसे अंग्रेजी चरणामृत पीने वाले ,,
आजकल आत्महत्याओ का दौर जारी है
कही किसान तो कही पत्रकारिता मारी है
कहीं इंसानियत कहीं धार्मिकता जारी है
कहीं सियासत से भी मार्मिकता भारी है "|| ---------- विजयलक्ष्मी
कही किसान तो कही पत्रकारिता मारी है
कहीं इंसानियत कहीं धार्मिकता जारी है
कहीं सियासत से भी मार्मिकता भारी है
अपने गिरेबान में झांकते नहीं हैं जो लोग
उनका ही इल्जाम का छिडकाव जारी है
सत्तर बरस का हवन कुण्ड कुंडा हो गया
अढाई बरस लग रहे सबको ज्यादा भारी है
सुना है अमर्त्यसेन अर्थशात्री बड़ा भारी है
वह नोबेल पुरुस्कार प्राप्त ज्ञान भंडारी है
चार फैक्ट्री लगाकर उठाया नुकसान भारी है
विश्वव्यापी अर्थशात्री अर्थव्यवस्था को डूबा गये
दस बरस बनकर कठपुतली सरकार चला गये
शिक्षा में कहते झोल हुआ बहुत बड़ा है ,,
इतिहास तो सारा ही गलती और गुनाहों से भरा है
पटेल से छिनकर गद्दी नेहरु को देने पर गांधी अड़ा है
नेताजी सुभाषचंद से अध्यक्ष पद छुड्वाया था ,,
मोतीलाल नेहरु से मिली दौलत का कर्ज चुकाया था
आजाद के मुखबिर को क्यूँ प्रधानमन्त्री बनवाया था
भगतसिंह को किसने समय से पहले फांसी चढवाया था
जतिन दास से देशभक्त को किसने आतंकी बताया था
भारत माँ की छाती चीर सडक का नक्शा किसने बनवाया था
आज उन्हें चिंता किसकी है जिसने पीढियों नोचा है
माँ की ममता की कीमत क्या कब किसने सोचा है
गद्दारों के वंशज यहाँ गद्दी पर मौज उड़ाते हैं
तात्याँटोपे के वंशज चाय बेच पेट की आग बुझाते हैं
लक्ष्मीबाई को धोखा देकर चैन अमन से जीने वाले ,,
देशभक्त हुए कैसे अंग्रेजी चरणामृत पीने वाले ,,
आजकल आत्महत्याओ का दौर जारी है
कही किसान तो कही पत्रकारिता मारी है
कहीं इंसानियत कहीं धार्मिकता जारी है
कहीं सियासत से भी मार्मिकता भारी है "|| ---------- विजयलक्ष्मी
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