" मुस्कुरा रहा है वक्त ताकू पर रखकर हमे ,,
जिन्दगी की होलिका हम भी जलाये बैठे हैं || " --- विजयलक्ष्मी
"कुछ सुनहरी सी यादें ,,फिर कुरेद गयी दिल ,,
हमे याद हैं तन्हाईयाँ ,,वो भूल गये महफिल ||" ---- विजयलक्ष्मी
जिन्दगी की होलिका हम भी जलाये बैठे हैं || " --- विजयलक्ष्मी
"कुछ सुनहरी सी यादें ,,फिर कुरेद गयी दिल ,,
हमे याद हैं तन्हाईयाँ ,,वो भूल गये महफिल ||" ---- विजयलक्ष्मी
"कब गठरियों की गाँठ बदली रंगरेज ने ,,
कुछ पंचरंगी चुनरिया बंट रही दहेज में || " -------- विजयलक्ष्मी
" हर कोई चकमक सा पर्दा लिए है साथ में ,,
रेशमी अहसास जगाने के लिए ,,
आँखों में लगा हो तो ख़ूबसूरती बढती है
भूलकर ईमान पैबंद दौलत का लगाये बैठे हैं ||
आँखों में लगा हो तो ख़ूबसूरती बढती है
भूलकर ईमान पैबंद दौलत का लगाये बैठे हैं ||
कोई चुप गमगीन यादों के सिलसिले लिए
मुस्कुराने की चाहत दबाये दिल के कोने में
किसी को दर्प है कुव्वत ए फितरत पर
वफा का रंग कन्धों पर शाल सा ढांपे बैठे हैं ||
मुस्कुराने की चाहत दबाये दिल के कोने में
किसी को दर्प है कुव्वत ए फितरत पर
वफा का रंग कन्धों पर शाल सा ढांपे बैठे हैं ||
सर्द मौसम में किये चर्चे गर्मागर्म
वो ताश के पत्ते से बिखरते हुए अहसास
चीड़ की मानिंद अडिग पत्तों को छोड़ते हुए
बुजुर्गवा से धवल पर्वत चिंतातुर मन में बैठे हैं ||
वो ताश के पत्ते से बिखरते हुए अहसास
चीड़ की मानिंद अडिग पत्तों को छोड़ते हुए
बुजुर्गवा से धवल पर्वत चिंतातुर मन में बैठे हैं ||
गिनते है समय-दर्पण में बरस बीते लम्हे
गिरते पहाड़ी झरनों के जल-प्रपात ह्रदय पटल पर
कुछ अखरे से कुछ बिखर कर निखरे से
कुछ फसल कीट खा गयी जैसे सर पकड़े बैठे हैं || " ------- विजयलक्ष्मी
गिरते पहाड़ी झरनों के जल-प्रपात ह्रदय पटल पर
कुछ अखरे से कुछ बिखर कर निखरे से
कुछ फसल कीट खा गयी जैसे सर पकड़े बैठे हैं || " ------- विजयलक्ष्मी
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