" प्यार का सीधा अर्थ दैहिकता से जोड़ा जाता है ,,
ये दीगर है नारी देह को नजर से निचौडा जाता है ||
बर्दाश्त करें तो रहने को घर खाने को निवाले हैं
पलट कुछ उंचा बोली तो राहों पर छोड़ा जाता है ||
हक की बात करे कैसे क्या हक कुछ कहने का
मन से विरत नजर फिरे तबियत से तोडा जाता है ||
दान दहेज़ उसके गहने शिक्षा को दोहन खूब हुआ
पढ़ी लिखी इल्जाम हजारो रिश्तों में जोड़ा जाता है ||
इंसान कहो माना किसने संशय अस्तित्व बचे कैसे
जन्म से पहले ही लडकी, कैची से खकौड़ा जाता है ||" --------- विजयलक्ष्मी
ये दीगर है नारी देह को नजर से निचौडा जाता है ||
बर्दाश्त करें तो रहने को घर खाने को निवाले हैं
पलट कुछ उंचा बोली तो राहों पर छोड़ा जाता है ||
हक की बात करे कैसे क्या हक कुछ कहने का
मन से विरत नजर फिरे तबियत से तोडा जाता है ||
दान दहेज़ उसके गहने शिक्षा को दोहन खूब हुआ
पढ़ी लिखी इल्जाम हजारो रिश्तों में जोड़ा जाता है ||
इंसान कहो माना किसने संशय अस्तित्व बचे कैसे
जन्म से पहले ही लडकी, कैची से खकौड़ा जाता है ||" --------- विजयलक्ष्मी
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 14 दिसम्बर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत खूब ।
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