"" आओ गलतियाँ दिखाए ,,
मिडिया को मण्डी बनाये ,,
गलतियाँ पुरानी नई सरकार की दिखाए
दौलत मिलेगी बदले में ,,
आओ मौज उडाये ,,
हम तो पत्रकार है यारों ...
आओ पत्रकारिता भुनाए ""
वे सारे राजनीतिक दल जिनका "रिप्रजेंटेशन ऑफ़ दी पीपल एक्ट 1951 " के सेक्शन 29 ए के तहत रजिस्ट्रेशन हुआ है , उन्हें इनकम टैक्स से छूट मिलता है - यही इनकम टैक्स ऐक्ट का नियम है। यह संविधान में लिखा है , और संविधान कोई नोटबंदी के बाद का लिखा हुआ तो नहीं है। किन्तु क्या करें ? प्रेस और मीडियावालो को तो जिगोलो बनना ही है। अब ऐसा हो नहीं सकता कि संपादक,सह-संपादक , रिपोर्टर इत्यादि दिग्गज ज्ञानियों को इस बात का पता न हो। फिर भी वे जानबूझकर आधे सच -आधे झूठ का प्रचार करके सरकार की निंदा करने पर उतारू हैं । उन्हें अपने प्रेस्सटिट्यूट नाम को सार्थक जो करना है । जवाहरलाल नेहरू सरकार ने इनकम टैक्स एक्ट बनाया , उसमे राजनैतिक पार्टियों को मिलने वाले डोनेशन को इनकम टैक्स से मुक्त रखा गया। बाद के सुधारो में ये हुआ की अगर डोनेशन की राशि 20000 से ज्यादा है तो वो सिर्फ चेक से स्वीकार की जा सकती है। इसके नीचे कैश से।
20000 से ऊपर के ट्रांजेक्शन चेक से होने चाहिए। लेकिन कमियां ये है की ये 20 हजार की रकम एक दिन के लिए है। अगर किसी कंपनी को 1 लाख का पेमेंट कैश में मिलना है या करना है तो वो 5 दिन में 20-20 हजार का पेमेंट दिखा देती हैं अपनी बुक्स में ।
जैसे बिना पैन नंबर के आप किसी बैंक अकाउंट में 50 हजार से ज्यादा जमा नहीं कर सकते। आपको एक लाख जमा करना है ,आप 45-45 हजार और फिर दस हजार तीन दिन में बिना पैन नम्बर के जमा कर देते हैं।
आपने सिस्टम के इसी लचर ब्यवस्था का फायदा उठाया जा रहा । ऐसे ही कानून का फायदा पार्टियां उठाती आ रही हैं । फर्जी मेंबर और उनके द्वारा फर्जी डोनेशन दिखाकर चुनाव में करोडो खर्च करती हैं। यहां तक की निर्वाचन आयोग को भी ठेगा दिखा देते है ये राजनैतिक दल । फिर इसका समाधान है पूरी तरह कैशलेस सिस्टम में । जब सबकुछ बैंक के जरिये होगा , तब काला धन छुपाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन होगा।
परंतु विरोधी दल फिर वही गरीबो का रोना रोयेंगे। जैसे अभी रो रहे हैं। गरीब कैसे कैशलेस में कैसे जिन्दा रहेगा। गरीब तो लाइन में मर रहा है। आदि आदि फिर सरकार कैसे फैसला ले ? करप्शन का जो मॉडल पिछले 70 सालों में खड़ा हुआ है क्या वो एक झटके में दूर हो जायेगा ? क्या जादू की छड़ी है मोदी सरकार के पास ? मोदी सरकार प्रयास कर रही है ! वैसे मोदी सरकार से मेरी बिनती है की राजनैतिक दलो पर बना हुआ पुराना कानून बदल दे पर इसके लिए विपक्ष का साथ मिलेगा क्या ? ये भविष्य में छिपा हुआ है !
मिडिया को मण्डी बनाये ,,
गलतियाँ पुरानी नई सरकार की दिखाए
दौलत मिलेगी बदले में ,,
आओ मौज उडाये ,,
हम तो पत्रकार है यारों ...
आओ पत्रकारिता भुनाए ""
वे सारे राजनीतिक दल जिनका "रिप्रजेंटेशन ऑफ़ दी पीपल एक्ट 1951 " के सेक्शन 29 ए के तहत रजिस्ट्रेशन हुआ है , उन्हें इनकम टैक्स से छूट मिलता है - यही इनकम टैक्स ऐक्ट का नियम है। यह संविधान में लिखा है , और संविधान कोई नोटबंदी के बाद का लिखा हुआ तो नहीं है। किन्तु क्या करें ? प्रेस और मीडियावालो को तो जिगोलो बनना ही है। अब ऐसा हो नहीं सकता कि संपादक,सह-संपादक , रिपोर्टर इत्यादि दिग्गज ज्ञानियों को इस बात का पता न हो। फिर भी वे जानबूझकर आधे सच -आधे झूठ का प्रचार करके सरकार की निंदा करने पर उतारू हैं । उन्हें अपने प्रेस्सटिट्यूट नाम को सार्थक जो करना है । जवाहरलाल नेहरू सरकार ने इनकम टैक्स एक्ट बनाया , उसमे राजनैतिक पार्टियों को मिलने वाले डोनेशन को इनकम टैक्स से मुक्त रखा गया। बाद के सुधारो में ये हुआ की अगर डोनेशन की राशि 20000 से ज्यादा है तो वो सिर्फ चेक से स्वीकार की जा सकती है। इसके नीचे कैश से।
20000 से ऊपर के ट्रांजेक्शन चेक से होने चाहिए। लेकिन कमियां ये है की ये 20 हजार की रकम एक दिन के लिए है। अगर किसी कंपनी को 1 लाख का पेमेंट कैश में मिलना है या करना है तो वो 5 दिन में 20-20 हजार का पेमेंट दिखा देती हैं अपनी बुक्स में ।
जैसे बिना पैन नंबर के आप किसी बैंक अकाउंट में 50 हजार से ज्यादा जमा नहीं कर सकते। आपको एक लाख जमा करना है ,आप 45-45 हजार और फिर दस हजार तीन दिन में बिना पैन नम्बर के जमा कर देते हैं।
आपने सिस्टम के इसी लचर ब्यवस्था का फायदा उठाया जा रहा । ऐसे ही कानून का फायदा पार्टियां उठाती आ रही हैं । फर्जी मेंबर और उनके द्वारा फर्जी डोनेशन दिखाकर चुनाव में करोडो खर्च करती हैं। यहां तक की निर्वाचन आयोग को भी ठेगा दिखा देते है ये राजनैतिक दल । फिर इसका समाधान है पूरी तरह कैशलेस सिस्टम में । जब सबकुछ बैंक के जरिये होगा , तब काला धन छुपाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन होगा।
परंतु विरोधी दल फिर वही गरीबो का रोना रोयेंगे। जैसे अभी रो रहे हैं। गरीब कैसे कैशलेस में कैसे जिन्दा रहेगा। गरीब तो लाइन में मर रहा है। आदि आदि फिर सरकार कैसे फैसला ले ? करप्शन का जो मॉडल पिछले 70 सालों में खड़ा हुआ है क्या वो एक झटके में दूर हो जायेगा ? क्या जादू की छड़ी है मोदी सरकार के पास ? मोदी सरकार प्रयास कर रही है ! वैसे मोदी सरकार से मेरी बिनती है की राजनैतिक दलो पर बना हुआ पुराना कानून बदल दे पर इसके लिए विपक्ष का साथ मिलेगा क्या ? ये भविष्य में छिपा हुआ है !
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