Thursday, 15 December 2016

सरदार बल्लभ भाई पटेल ( लोह पुरुष )

" कौन हुआ अहो लोहपुरुष प्रबल,
रही साथ जिसके इच्छा-शक्ति की शिला अटल,
किंचित भी हिला न सका कोई निर्णय शत्रुदल ,
सत्य के पुजारी देश-भक्ति करती थी विह्वल 
राष्ट्र का सपूत राष्ट्र-गौरव राष्ट्र का अभिमान हैं 
बुद्धिबल अतुलित अचम्भित करते फैसले
शान्तमना गम्भीर सागर सम ह्रदयतल
ह्रदय सरल किन्तु दृढ़ता में अविचल अटल
सादगी बाना मन का सादगी धरा वेश अविराम हैं
भविष्य दृष्टा राष्ट्र के पूजते थे माँ भारती
ह्रदय-तल से उतारते रहे माँ भारती की आरती
शत्रु-दल की चालाकियों के अकाट्य बाण थे
सत्य से प्रेम निर्लिप्त थे भारत सारथी
कठोर नग्न भाषा में विशुद्ध राष्ट्रीयता थी भरी
राष्ट्र को समर्पित जीवन सत्य पारखी महान है
राष्ट्र की आन है वो माँ भारती की शान है ,,
मान है वो राष्ट्र का ,,लोह्पुरुष सम्भाला जिसने नाम है  "
------------ विजयलक्ष्मी



प्रे प्रेरक प्रसंग 1. : 
सरदार पटेल – सादगी और नम्रता की प्रतिमूर्ति थे. -----------------------------------------------------------
सरदार पटेल भारतीय लेजिस्लेटिव ऐसेंबली के President थे. एक दिन वे ऐसेंबली के कार्यो से निवृति होकर घर जाने को ही थे कि, एक अंग्रेज दम्पत्ति वहां पहुंच गया. ये दम्पत्ति विलायत से भारत घुमने आया हुआ था. पटेल की बढ़ी हुई दाढ़ी और सादे वस्त्र देखकर उस दम्पत्ति ने उनको वहां का चपरासी समझ लिया. उन्होंने पटेल से ऐसेबंली में घुमाने के लिए कहा. पटेल ने उनका आग्रह विनम्रता से स्वीकार किया और उस दम्पत्ति को पूरे ऐसेंबली भवन में साथ रहकर घुमाया. अग्रेज दम्पति बहुत खुश हुए और लौटते समय पटेल को एक रूपया बख्शिश में देना चाहा. परन्तु पटेल बड़े नम्रतापूर्वक मना कर दिया. अंग्रेज दम्पति वहां से चला गया. दूसरे दिन ऐसेंबली की बैठक थी. दर्शक गैलेरी में बैठे अंग्रेज दम्पत्ति ने सभापति के आसन पर बढ़ी हुई दाढ़ी और सादे वस्त्रों वाले शख्स को सभापति के आसन पर देखकर हैरान रह गया. और मन ही मन अपनी भूल पर पश्चाताप करने लगा कि वे जिसे यहाँ चपरासी समझ रहे थे, वह तो लेजिस्लेटिव ऐसेंबली के President निकले. वो उनकी सादगी पर अपने विचरों पर शर्मिंदगी मेहसूस कर रहे थे. लौहपुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल की सादगी, सहज स्वभाव और नम्रता की इससे बड़ी बानगी क्या हो सकती है?
प्रेरक प्रसंग 2. : 
सरदार पटेल – अपना कर्तव्य पूरी ईमानदारी, समर्पण व हिम्मत से साथ पूरा करते थे. ------------------------------------------------------------------------------------------------
उनके इस गुण का दर्शन हमें सन् 1909 की इस घटना से होते है. वे कोर्ट में केस लड़ रहे थे, उस समय उन्हें अपनी पत्नी की मृत्यु (11 जनवरी 1909) का तार मिला. पढ़कर उन्होंने इस प्रकार पत्र को अपनी जेब में रख लिया जैसे कुछ हुआ ही नहीं. दो घंटे तक बहस कर उन्होंने वह केस जीत लिया. बहस पूर्ण हो जाने के बाद न्यायाधीश व अन्य लोगों को जब यह खबर मिली कि सरदार पटेल की पत्नी का निधन हुआ गया. तब उन्होंने सरदार से इस बारे में पूछा तो सरदार ने कहा कि “उस समय मैं अपना फर्ज निभा रहा था, जिसका शुल्क मेरे मुवक्किल ने न्याय के लिए मुझे दिया था. मैं उसके साथ अन्याय कैसे कर सकता था.” ऐसी कर्तव्यपरायणता और शेर जैसे कलेजे की मिशाल इतिहास में विरले ही मिलती है. इससे बड़ा कर्तव्यपरायणता का चरित्र और क्या हो सकता है? प्रेरक प्रसंग 3. : 

सरदार पटेल – कच्ची पक्की का फर्क --------------------------------------------- सरदार पटेल एक बार संत विनोवा भावे जी के आश्रम गये जहां उन्हें भोजन भी ग्रहण करना था. आश्रम की रसोई में उत्तर भारत के किसी गांव से आया कोई साधक भोजन व्यवस्था से जुड़ा था. सरदार पटेल को आश्रम का विशिष्ठ अतिथि जानकर उनके सम्मान में साधक ने सरदार जी से पूछा कि – आपके लिये रसोई पक्की अथवा कच्ची. सरदार पटेल इसका अर्थ न समझ सके तो साधक से इसका अभिप्राय पूछा, तो साधक ने अपने आशय को कुछ और स्पष्ट करते हुये कहा कि वे कच्चा खाना खायेगे अथवा पक्का. यह सुनकर सरदार जी ने तपाक से उत्तर दिया कि – कच्चा क्यों खायेंगे पक्का ही खायेंगे. खाना बनने के बाद जब पटेल जी की थाली में पूरी, कचौरी, मिठाई जैसी चीजें आयी तो सरदार पटेल ने सादी रोटी और दाल मांगी. तो वह साधक उनके सामने आकर खड़ा हो गया और उन्हें बताया गया कि – उन्हीं के निर्देशन पर ही तो पक्की रसोई बनायी गयी थी. उत्तर भारतीय ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी रोटी, सब्जी, दाल, चावल जैसे सामान्य भोजन को कच्ची रसोई कहा जाता है. तथा पूरी, कचौरी, मिठाई आदि विशेष भोजन (तला-भुना) को आम बोलचाल में पक्की रसोई कहा जाता है. इस घटना के बाद ही पटेल उत्तर भारत की कच्ची और पक्की रसोई के फ़र्क़ को समझ पाये. सरदार पटेल जैसी सादगी से रहते थे वैसे ही हमेशा सादा सात्विक भोजन लेते थे


राष्ट्र सपूत

करमसदनो कर्मवीर ने, बारडोलीनो तारणहार;
गांघीसैन्यनो अदनो सैनिक, भारतनो स्वीकृत सरदार.

मांधाताना मद छोडावे, एवो तारो रण टंकार;
वाणीनो विलास गमे ना, शब्द कर्ममां एकाकार.

शब्द-शस्त्र ने नीति-अस्त्रनो, परम उपासक नव चाणक्य;
शासकने तें साधक कीधा, राष्ट्र-यज्ञना सह याचक.

संघ-शक्तिनो अजोड साघक कार्य सिद्धिनो आह्वाहक;
एक तिरंगानी छायामां, एखंड भारतनो सर्जक.

बापुने पगले तुं चाल्यो, बनी भक्त, शूर, दृढ प्रतिज्ञ;
अद्भुत ऐक्य दई भारतने, पूर्ण कर्यो जीवननो यज्ञ.

स्वराज्यनी चालीसी टाणे, सुराज्य झंखे सौ नर-नार;
स्मरे स्नेहथी, सादर वन्दे, जय जय राष्ट्र सपूत सरदार.

                                 - हरगोविंद चन्दुलाल नायक (अमदावाद, 1986)



खेडूतोनो तारणहार

कोनी हाके मडदां ऊठ्यां ?
कायर केसरी थई तडूक्या ?
कोनी पाडे कपटी जूठा,
जालीमोनां गात्र वछुट्यां ?
खेडूतोनो तारणहार,
जय सरदार ! जय सरदार
खेडूतोनी मुक्ति काजे,
सिंह समो गुजराते गाजे,
ताज विनानो राजा राजे,
कोण हवे जने वल्लभ आजे !
खेडूतोनो तारणहार,
जय सरदार ! जय सरदार
माटीमांथी मर्द बनावी,
सभळी सत्ताने थंभावी,
गुर्जरी माने जेब अपावी,
भारतभर उषा प्रगटावी.
खेडूतोनो तारणहार,
जय सरदार ! जय सरदार
लीला नंदनवन भेलाडे,
रांकडी रैयतने रंजाडे,
एवा नंदी नाथ्या कोणे ?
पळमां दीधा पूरी खूणे.
खेडूतोनो तारणहार,
जय सरदार ! जय सरदार

                     - कल्याणजी महेता (बारडोली, 1928)


His Works are actions

Cross legend he sits with a stony stoop
And dark deep furrowed face
Eyes at once undaunted searching kind
A head too cool a nook for fire anged words

Have you ever heard him speak?
It is not words he utters.
He musters the strength of the shriveled soul
Of a vast famishing people;
And ever his steep stark personality
Forges word winged weapons.

It is his wont to fling
Barbed words at feasting ill
But of the from his soul sling
Darts forth not words but will
His words are actions.
                    - Umashankar Joshi (Ahmedabad, 1948)

स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित नेहरु व प्रथम उप प्रधानमंत्री सरदार पटेल में आकाश-पाताल का अंतर था। यद्यपि दोनों ने इंग्लैण्ड जाकर बैरिस्टरी की डिग्री प्राप्त की थी परंतु सरदार पटेल वकालत में पं॰ नेहरू से बहुत आगे थे तथा उन्होंने सम्पूर्ण ब्रिटिश साम्राज्य के विद्यार्थियों में सर्वप्रथम स्थान प्राप्त किया था। नेहरू प्राय: सोचते रहते थे, सरदार पटेल उसे कर डालते थे। नेहरू शास्त्रों के ज्ञाता थे, पटेल शस्त्रों के पुजारी थे। पटेल ने भी ऊंची शिक्षा पाई थी परंतु उनमें किंचित भी अहंकार नहीं था। वे स्वयं कहा करते थे, "मैंने कला या विज्ञान के विशाल गगन में ऊंची उड़ानें नहीं भरीं। मेरा विकास कच्ची झोपड़ियों में गरीब किसान के खेतों की भूमि और शहरों के गंदे मकानों में हुआ है।" पं॰ नेहरू को गांव की गंदगी, तथा जीवन से चिढ़ थी। पं॰ नेहरू अन्तरराष्ट्रीय ख्याति के इच्छुक थे तथा समाजवादी प्रधानमंत्री बनना चाहते थे।

देश की स्वतंत्रता के पश्चात सरदार पटेल उप प्रधानमंत्री के साथ प्रथम गृह, सूचना तथा रियासत विभाग के मंत्री भी थे। सरदार पटेल की महानतम देन थी 562 छोटी-बड़ी रियासतों का भारतीय संघ में विलीनीकरण करके भारतीय एकता का निर्माण करना। विश्व के इतिहास में एक भी व्यक्ति ऐसा न हुआ जिसने इतनी बड़ी संख्या में राज्यों का एकीकरण करने का साहस किया हो। 5 जुलाई 1947 को एक रियासत विभाग की स्थापना की गई थी। एक बार उन्होंने सुना कि बस्तर की रियासत में कच्चे सोने का बड़ा भारी क्षेत्र है और इस भूमि को दीर्घकालिक पट्टे पर हैदराबाद की निजाम सरकार खरीदना चाहती है। उसी दिन वे परेशान हो उठे। उन्होंने अपना एक थैला उठाया, वी.पी. मेनन को साथ लिया और चल पड़े। वे उड़ीसा पहुंचे, वहां के 23 राजाओं से कहा, "कुएं के मेढक मत बनो, महासागर में आ जाओ।" उड़ीसा के लोगों की सदियों पुरानी इच्छा कुछ ही घंटों में पूरी हो गई। फिर नागपुर पहुंचे, यहां के 38 राजाओं से मिले। इन्हें सैल्यूट स्टेट कहा जाता था, यानी जब कोई इनसे मिलने जाता तो तोप छोड़कर सलामी दी जाती थी। पटेल ने इन राज्यों की बादशाहत को आखिरी सलामी दी। इसी तरह वे काठियावाड़ पहुंचे। वहां 250 रियासतें थी। कुछ तो केवल 20-20 गांव की रियासतें थीं। सबका एकीकरण किया। एक शाम मुम्बई पहुंचे। आसपास के राजाओं से बातचीत की और उनकी राजसत्ता अपने थैले में डालकर चल दिए। पटेल पंजाब गये। पटियाला का खजाना देखा तो खाली था। फरीदकोट के राजा ने कुछ आनाकानी की। सरदार पटेल ने फरीदकोट के नक्शे पर अपनी लाल पैंसिल घुमाते हुए केवल इतना पूछा कि "क्या मर्जी है?" राजा कांप उठा। आखिर 15 अगस्त 1947 तक केवल तीन रियासतें-कश्मीर, जूनागढ़ और हैदराबाद छोड़कर उस लौह पुरुष ने सभी रियासतों को भारत में मिला दिया। इन तीन रियासतों में भी जूनागढ़ को 9 नवम्बर 1947 को मिला लिया गया तथा जूनागढ़ का नवाब पाकिस्तान भाग गया। 13 नवम्बर को सरदार पटेल ने सोमनाथ के भग्न मंदिर के पुनर्निर्माण का संकल्प लिया, जो पंडित नेहरू के तीव्र विरोध के पश्चात भी बना। 1948 में हैदराबाद भी केवल 4 दिन की पुलिस कार्रवाई द्वारा मिला लिया गया। न कोई बम चला, न कोई क्रांति हुई,"||

1 comment:

  1. ह्रदय सरल किन्तु दृढ़ता में अविचल अटल
    सादगी बाना मन का सादगी धरा वेश अविराम हैं
    भविष्य दृष्टा राष्ट्र के पूजते थे माँ भारती
    ह्रदय-तल से उतारते रहे माँ भारती की आरती
    शत्रु-दल की चालाकियों के अकाट्य बाण थे
    सत्य से प्रेम निर्लिप्त थे भारत सारथी..........................क्रांति का अनहद नाद .विप्लवकारी कलम को फिर फिर नमन है

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