आज फिर.. इल्जाम हवा पर आया है ,
दरख्तों ने मलय को तूफ़ान बताया है ||
सूखा रास आता है सहरा को सदा से
एक बदली बरसात ने सब बहाया है ||
फूलो की चाहत में बसंत उमड़ा था
देखो पतझड़ का इल्जाम लगाया है ||
बंद दरो के पीछे सांकल पर मुहरबंदी
बरसों पुराना इक सबक याद आया है ||
जब छोड़ना होता है घर वनिता को
घर की कड़ियों में ही साप बताया है || -- विजयलक्ष्मी
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