Sunday, 25 May 2014

" ओ बदरा तुम घिर घिर आओ ,"




ओ बदरा तुम घिर घिर आओ ,
जलती है धरती जल बरसाओ .
ओ पवन बसंती सुन खोई कहाँ हो
सुलगती अगन शीतल कर जाओ
सूखे गुंचे और सूरज भी जलता
मदिर मदिर स्नेह-रस बरसाओ
देख दरारे तेरा मन नहीं भरता
मेघा ,उमड़ घुमड़ तुम आ जाओ
हा हाकर मची धरती पर
अब तो जल बरसाओ ...
ओ बदरा तुम घिर घिर आओ ..
जलती है धरती जल बरसाओ
..---- विजयलक्ष्मी

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