ओ बदरा तुम घिर घिर आओ ,
जलती है धरती जल बरसाओ .
जलती है धरती जल बरसाओ .
ओ पवन बसंती सुन खोई कहाँ हो
सुलगती अगन शीतल कर जाओ
सुलगती अगन शीतल कर जाओ
सूखे गुंचे और सूरज भी जलता
मदिर मदिर स्नेह-रस बरसाओ
मदिर मदिर स्नेह-रस बरसाओ
देख दरारे तेरा मन नहीं भरता
मेघा ,उमड़ घुमड़ तुम आ जाओ
मेघा ,उमड़ घुमड़ तुम आ जाओ
हा हाकर मची धरती पर
अब तो जल बरसाओ ...
अब तो जल बरसाओ ...
ओ बदरा तुम घिर घिर आओ ..
जलती है धरती जल बरसाओ
जलती है धरती जल बरसाओ
..---- विजयलक्ष्मी
No comments:
Post a Comment