हमे अनुवाद नहीं आता अनुनाद करेंगे
फुर्सत मिली तो ..थोडा सम्वाद करेंगे
वेदना की चेतना आसमान पर तैरने दो
दर्द को रक्तपिपासा का अहसास उभरने दो
जिन्दा से दीखते लोग जो मरे पड़े जड़ होने दो
उभरने दो खार को कब्र पर मेरी
गंध बन जब हवा के साथ लाश महकेगी मेरी
देखना नजर में उठते हुए सितारे को ध्रुव अटल सा
पहचान लेना अँधेरे उजाले में बदलने के समय को
जिजीविषा अंतिम लक्ष्य पर पहुंचेगी जब
मौत का परचम लहराकर जिन्दगी मांगेगा हाथ को पसारे
बस तभी हिसाब हो जायेगा हर दर्द का
गरीबी में रक्तचाप बढकर भी दीखता नहीं
रिक्शा के पहियों में चित्कारती अँधेरे की कालिमा
सयानी होती बेटी की देह पर झांकता नुक्कड़ का नेह
पन्द्रह बरस की उम्र भी बीस की नजर आती है
सुना तुमने झुग्गी में लडकी की जात उम्र से पहले बड़ी हो जाती है
बर्तन मांजने भेजू रोटी के लिए दिल दहलता है
तीसरी कोठी में रहने वाला बुद्धा दिग्विजय की शक्ल से मिलता है
शहर की सबसे खामोश गली में रातभर रौनक रहती है
उस ऊँचे मकान में कोई सनी लियोन रहती है
बाबु जी ..किसी तरह हाथ पीले हो जाये तो अच्छा
क़ानून को क्या पता ...एक ग्र्रेब बाप कैसे पालता है अपना बच्चा
हर किसी को हैसियत पैसे की बड़ी दिखती है
मेरी जिन्दगी तो इंसानियत पर चलती है
वो जिसका सर पड़ोसी ने काटा ...उसकी माँ बीमार बहन को भी नेता जी ने डाटा
कोई नहीं बचा घर में अब कमाने वाला
ताजमहल के बनाने में कटे हाथो का मजदूर ने दिया हवाला
एक कोई गड्ढे में गिर गया था ...उसे हाथों पर सबने लिया था
यहाँ तो गड्ढे ही गड्ढे हैं ...जाने कितने रोज गिरते रहते हैं
भला हो मिडिया का इतना कोहराम भी मचाया ...लेकिन कोई गड्ढा आजतक नहीं भर पाया
फिर मिडिया भी चल पड़ा पैसा बनाने ...नई नवेली सी खबर कोई भुनाने
सरकारी तरकश खाली हो गया क्या ?
एक रिमोट से चलता रोबोट बैठा था खाली कर गया क्या ?
हमे अनुवाद नहीं आता अनुनाद करेंगे
फुर्सत मिली तो ..थोडा सम्वाद करेंगे
वेदना की चेतना आसमान पर तैरने दो
दर्द को रक्तपिपासा का अहसास उभरने दो
बहने दो लहू में ...शिराओ से होकर दिल में उतरने दो
अभी कुछ कदम तो साथ चलने दो
न हो तुम नाराज होकर मुख मोड़ लो ...न हो रिश्ता ही तोड़ लो
हम डर से गये हैं ..थोडा गुजर से गये हैं
वेदना को धमका दिया है ...नेह को रंग में डूबा लिया है
बस ...यूँही ..इतना सब तुमसे भला क्यूँ कह दिया है --- विजयलक्ष्मी
फुर्सत मिली तो ..थोडा सम्वाद करेंगे
वेदना की चेतना आसमान पर तैरने दो
दर्द को रक्तपिपासा का अहसास उभरने दो
जिन्दा से दीखते लोग जो मरे पड़े जड़ होने दो
उभरने दो खार को कब्र पर मेरी
गंध बन जब हवा के साथ लाश महकेगी मेरी
देखना नजर में उठते हुए सितारे को ध्रुव अटल सा
पहचान लेना अँधेरे उजाले में बदलने के समय को
जिजीविषा अंतिम लक्ष्य पर पहुंचेगी जब
मौत का परचम लहराकर जिन्दगी मांगेगा हाथ को पसारे
बस तभी हिसाब हो जायेगा हर दर्द का
गरीबी में रक्तचाप बढकर भी दीखता नहीं
रिक्शा के पहियों में चित्कारती अँधेरे की कालिमा
सयानी होती बेटी की देह पर झांकता नुक्कड़ का नेह
पन्द्रह बरस की उम्र भी बीस की नजर आती है
सुना तुमने झुग्गी में लडकी की जात उम्र से पहले बड़ी हो जाती है
बर्तन मांजने भेजू रोटी के लिए दिल दहलता है
तीसरी कोठी में रहने वाला बुद्धा दिग्विजय की शक्ल से मिलता है
शहर की सबसे खामोश गली में रातभर रौनक रहती है
उस ऊँचे मकान में कोई सनी लियोन रहती है
बाबु जी ..किसी तरह हाथ पीले हो जाये तो अच्छा
क़ानून को क्या पता ...एक ग्र्रेब बाप कैसे पालता है अपना बच्चा
हर किसी को हैसियत पैसे की बड़ी दिखती है
मेरी जिन्दगी तो इंसानियत पर चलती है
वो जिसका सर पड़ोसी ने काटा ...उसकी माँ बीमार बहन को भी नेता जी ने डाटा
कोई नहीं बचा घर में अब कमाने वाला
ताजमहल के बनाने में कटे हाथो का मजदूर ने दिया हवाला
एक कोई गड्ढे में गिर गया था ...उसे हाथों पर सबने लिया था
यहाँ तो गड्ढे ही गड्ढे हैं ...जाने कितने रोज गिरते रहते हैं
भला हो मिडिया का इतना कोहराम भी मचाया ...लेकिन कोई गड्ढा आजतक नहीं भर पाया
फिर मिडिया भी चल पड़ा पैसा बनाने ...नई नवेली सी खबर कोई भुनाने
सरकारी तरकश खाली हो गया क्या ?
एक रिमोट से चलता रोबोट बैठा था खाली कर गया क्या ?
हमे अनुवाद नहीं आता अनुनाद करेंगे
फुर्सत मिली तो ..थोडा सम्वाद करेंगे
वेदना की चेतना आसमान पर तैरने दो
दर्द को रक्तपिपासा का अहसास उभरने दो
बहने दो लहू में ...शिराओ से होकर दिल में उतरने दो
अभी कुछ कदम तो साथ चलने दो
न हो तुम नाराज होकर मुख मोड़ लो ...न हो रिश्ता ही तोड़ लो
हम डर से गये हैं ..थोडा गुजर से गये हैं
वेदना को धमका दिया है ...नेह को रंग में डूबा लिया है
बस ...यूँही ..इतना सब तुमसे भला क्यूँ कह दिया है --- विजयलक्ष्मी
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