चमक महताब की क्या खूब थी ख्वाबो भरी रात में ,
आओ देखो आग भी बढती ही जा रही आफताब में .
आसमां छितरे सितारों लिखी कोई गजल नायब है
रंग ए हिना सी महक है ,खूबसूरती छिपी हिजाब में
अँधेरी राह पर चमकना दीप सा क्या खूब हिसाब है
पैमाइश सूरज की हो कैसे ,ख्वाब संवरता ख्वाब में
हमरही भी हैं ,बेमानी भूख की गरीबों की जिन्दगी में
लिख रहा है नाम मेरा वो आढती उधारी के हिसाब में
बिल चुकाऊं क्यूँ न बिजली की न पानी की लाइन है
दफ्तर के चक्कर लगवा रहे मगर कानूनी किताब में -- विजयलक्ष्मी
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