Friday 30 May 2014

" बजती रागिनी सी दिल का ख्याल बनकर "

जिन्दा रहने लगा वो मुझमे ख्याल बनकर 
छोड़े निशाँ भी उसने मुझमे सवाल बनकर 

एक वक्त था वो जब हम खुद में भी नहीं थे 
जुदा आज भी , जिन्दा तुम ख्याल बनकर

पलको पे ठहरा अक्स झिलमिल सितारे सा 

बजती रागिनी सी दिल का ख्याल बनकर 

जल उठे थे जुगनू सा चमकने की फिराक में 
जल रहे है आज भी खुद में सवाल बनकर

आईना ए ख्वाहिश, आइना हुए भूलकर खुदी
बिखरी किरचे भी लहू में बही ख्याल बनकर

अब ,मैं हूँ संग बहता हुआ एक अहसास है
कश्ती में पतवार से तुम बसे ख्याल बनकर
.- विजयलक्ष्मी 

No comments:

Post a Comment