Wednesday 28 May 2014

"दिल की दीवार पर थाप देती देशराग की तरन्नुम "

"खोई सी चेतना का चिन्तन 
सम्वेदित वेदना का मनन 
सौंधी सी मौलिकता का हनन 
छिले हुए से श्ब्दाक्षारो का अंकन 
आहत हुयी आहट की अकुलाहट 
पुष्प की जीवंत सी मुस्कुराहट 
पतझड़ में झड़ गिरते पत्तों की सरसराहट 
गहनों में सजी बहन की मुस्कुराहट 
सरगम गाती चिडियों की चहचाहट 
अमुवा की बगिया में कोयल की कूक 
खाली से खेत में उगती हुयी भूख
सडक पर जार जार चिल्लाती धूप
राजपथ पर नंगे पाँव दौड़ती जनता की हूक
दिल की दीवार पर थाप देती देशराग की तरन्नुम
जिन्दगी और मौत ,,,जमी पर जन्नत मिले या जहन्नुम
आस की कली पर ओस सी तबस्सुम
जहेनसीब अपना पी डाले हमने इश्क ए वतन ए समन्दर भरे सागर औ खुम
खुद को ढूंढना मुश्किल... हुए हैं इसकदर गर्क औ गुम".
-- विजयलक्ष्मी

1 comment:

  1. खाली से खेत में उगती हुयी भूख
    सडक पर जार जार चिल्लाती धूप
    राजपथ पर नंगे पाँव दौड़ती जनता की हूक.... dil ko jhakjhorne waali panktiyaan.. bohat khoob

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