Friday 9 May 2014

" महकी पतझड़ की बसंती बयार "

" जिंदगी भी एक रवायत ही तो है ..
हर इक को मगर शिकायत ही तो है 

धरा पर जिन्दगी की तमन्ना ,
मिलना सूरज का इनायत ही तो है 

दुन्दुभी के राग रणभेरी बजना 
तड़तड़ाना नगाड़ा बगावत ही तो है

अंधेरो को जीतने की चाहत में 
जलना पतंगे सा अदावत ही तो है

महकी पतझड़ की बसंती बयार
चटकना कली का रवायत ही तो है "
-- विजयलक्ष्मी

No comments:

Post a Comment