Friday, 23 May 2014

" अनुनाद या नाद जब गुंजायमान आसमान तक होगा "

अनुनाद या नाद जब गुंजायमान आसमान तक होगा 

चिनार की आग धरा पर भभकती दिखेगी दूर तक 


अमलतास की चमकीली धूप सूरज को रंग देगी 


नमक कम हो जाये समन्दर का मैं नदी सी चली जा रही हूँ 


लहू शब्दों में उतरा तो रंगीन हो जाएगी तस्वीर सिंदूर सी 


और तिलक चन्दन का कम न पड़ जाये 


शंखनाद रात के सन्नाटे को चीरता चलेगा ..


इक छोटा सा दीप आंधी तूफ़ान में जलता मिलेगा

 
नौका की क्षति कैसी ..डूबकर मरेगी लहरों में देख लेगा समन्दर भी 


बरस लो ए बादलों तुम भी ..तपिश धरा कम कर सकोगे क्या 


खाली कर दो झोली कितनी भी... प्यास अगस्त्यमुनि से मिल चुकी है 


धार समय के पत्थर पर रगड़ कर तेज कर रहा है कब से ..


जानते हो नागफनी खिलती है मगर महक नहीं देती ..


नागफनी के फूल मरु में भड़कती आग को दर्शाते हैं 


सर के बल खड़े होकर देखने से सच नहीं बदलता 


तुम जानते हो सत्य क्या है ...मौत की चीख दहलाती कब है मुर्दों की बस्ती को 


मिटाना होगा झूठ और झूठ के बन्दों को ,


निशाना बनाकर धमाका ..करने की बात कहकर दुश्मन का घुंघट उठाना होगा ..


ईमान से दुश्मनी निभाई है हमने ..


जानते हो ..दोस्त बन गये गर ...नजरे नहीं झुकेगी ईमान की ..-- विजयलक्ष्मी

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