" गर्मी सर्दी सब सहता औ धूप में करता काम
दाने दाने को उपजाता तपाता जीवन तमाम
यही है अन्नदाता और धरती पर भगवान
मेहनत इसकी.. पेट भरता हर इंसान
धरती के सीने को चीर करता अथक परिश्रम
इक इक दाना खून-पसीना हरियाता खलियान
साहूकारी कर्ज के नीचे बीज पानी का इंतजाम
कभी अकाल कभी बाढ़ से मर जाता है किसान
राजनैतिक झमेलों से दलाल मौज उड़ा रहे
जी तोड़ मेहनत करके भी भूखा मरता किसान "
---- विजयलक्ष्मी
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