Saturday, 14 March 2015

तुम सम्यक कोण हो या पूरक ..

" तुम कौन हो ए जिन्दगी बताओ तो सही ?
तुम सम्यक कोण हो या पूरक ..
गति के मूल सिद्धांत हो या अनुपूरक
सवाल इक लिए ये जिन्दगी इतिहास हो रही है
अंको के गणित सी साथ चल रही ...

भावना की भौतिकी उलटी ही चली यहाँ
उठती भावनाओं से बना आंसू नीचे ही गिरा
बिन मिलाये रसायन खारा हुआ नैन-जल
बस कुछ उदासी भरे मिलाये थे पल
जब मुस्कुराये ...आलम फिर भी वही था
गमगीन आहटों से भी किस्सा रंगीन था
थोड़ी ख़ुशी तो थी कहीं पाने की ख्वाब में
पहाड़ सी जिन्दगी का तमाम भूगोल किताब में था
खिलता रहा गुलाब सा संग काँटों को लिए
ठोस अवस्था में बता कैसे लम्हे तमाम पिए
बहते रहे हम लेकिन नदी भी न बने
बैठे थे पेड़ के नीचे विपरीत भावनाए गुरुत्वाकर्षण के बल से थी
भावनाए उलटी दिशा में उठ रही थी
बहते थे आंसू तटबंध तोडकर
बाढ़ तो थी ...दुनिया अपने सिवा किसी की न बही ..
बांध भी इंटों से न बन सका
संत्वना के भरोसे था विश्वास पर टिका
दिख रहे विषय थे सब घूमते हुए
समाजशास्त्र में भी अर्थशास्त्र था घुसा
नागरिकता लिए शास्त्र लुटा जा रहा
बागवानी के सिद्धांत भ्रष्टाचार पर टिके थे
तुम समझ सको तो .....समझाना हमे भी ...
जीवनशास्त्र का रंग सबसे जुदा है क्यूँ 

 तुम कौन हो ए जिन्दगी बताओ तो सही ?
तुम सम्यक कोण हो या पूरक ..
गति के मूल सिद्धांत हो या अनुपूरक
 घरो में सभी के मनीप्लांट लटके थे
पैसो के पेड़ मेज के नीचे उगे थे ..
कागज पर बैठने को चिड़िया के दाने बिखरे थे मेजपर
".------ विजयलक्ष्मी

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